लेखनी प्रतियोगिता -11-Feb-2024
शीर्षक-स्त्री और वसंत
मुक्तछन्द
वसंत जैसी होती हैं स्त्रियाँ
जो कदम रखते ही बीहड़ को भी कर देती हैं उपवन
बना देती हैं सूने से मकान को सुंदर घर
कोने- कोने से धूल भरे जाले साफ करके
खिड़कियों पर मर्यादा के पर्दे डाल देती हैं
जिनकी पायल की छम छम से बजने लगते हैं घर में शंखनाद
एक स्त्री ही है जिसके बिना कोई भी अनुष्ठान पूर्ण नहीं हो सकता।
जिसके तुलसी पूजन से होने लगती हैं चारों दिशाएँ सुभाषित
जिसके कदमों की आहट से खिलने लगते हैं गृह आँगन की क्यारी में फूल
जिसके केशों की घटाओं में सिमट जाते हैं दोनों जहाँ
जिसके होने मात्र से घर का सूनापन भर जाता है मधुर कलरव से
जिसके हाथों का भात खाकर मिलती है क्षुधा पीड़ित उदर को तृप्ति
जिसके दुग्ध रूपी अमृत का पान करके शैशव पाता है नवजीवन
हाँ ऋतुराज जैसी ही होती हैं स्त्रियाँ
जिनके आँचल में आकर ठहर जाती है
चिरकालिक बहार
और प्रत्येक ऋतु लगती है मधुमास जैसी।
प्रीति चौधरी"मनोरमा"
जनपद बुलंदशहर
उत्तरप्रदेश
Mohammed urooj khan
13-Feb-2024 12:49 PM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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Gunjan Kamal
12-Feb-2024 03:47 PM
👏👌
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Ajay Tiwari
12-Feb-2024 09:00 AM
Nice👍
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